गौतम राजऋषि का रचना-संसार

यूँ तो गौतम की कविता और कहानियाँ अनेकों पत्रिकाएँ, समाचारपत्रों एवं वेबसाइट पर प्रकाशित हुई हैं, उनकी तीन पुस्तकें प्रतिष्ठित प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गयीं हैं। पाल ले इक रोग नादाँ से गौतम राजऋषि की एक प्रकाशित लेखक के रूप में शुरुआत हुई थी। पाल ले इक रोग नादाँ एक ग़ज़ल-संग्रह है। गौतम की दूसरी पुस्तक एक कहानी-संग्रह है – हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज। यह पुस्तक उन्होंने भारत के वीर सैनिकों को समर्पित की है! उनकी तीसरी और हाल की ही पुस्तक है नीला-नीला, सबसे चर्चित और उम्दा ग़ज़लों एवं शायरी से सजी हुई। नीचे आप हर पुस्तक के बारे में संक्षिप्त में जान पाएंगे एवं उन्हें खरीदने के लिए आवश्यक जानकारी भी प्राप्त कर सकेंगे।

Neela Neela Gautam Rajrishi poetry book

नीला-नीला

भारतीय साहित्य की ग़ज़ल, कविता एवं शायरी विधा में गौतम राजऋषि की इस पुस्तक ने एक अजब ही हलचल पैदा किया है! ‘आज तक’ द्वारा 2020 की हिंदी में प्रकाशित उत्कृष्ट पुस्तकों की सूचि में सम्मिलित होने से गौतम को एक प्रख्यात एवं प्रतिष्ठित शायर एवं कवि बनाने तक का श्रेय, कहीं न कहीं, कुछ न कुछ, इस पुस्तक को अवश्य जाता है! नीला-नीला में गौतम ने मुहब्बत के अनगिनत रंग उड़ेले हैं – जिसके नीले-नीले अशआर कहानियाँ सुनाते हैं…बूढ़े चिनार के पेड़ों की, चाँदी सी चमकती बर्फ़ीली वादियों की, महबूब की याद में दोहरे हो चुके दिसम्बर की और हर उस शय की जहाँ इश्क़ थोड़ा सा ठहरकर ग़ज़ल में घुल जाता है।

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पुस्तक समीक्षा पढ़ें:

Video review of Neela Neela by famous author Pankaj Subeer

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Hari Muskurahaton Wala Collage Gautam

हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज 

हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज एक फ़ौजी की क़लम से लिखी गयी इक्कीस कहानियों का संकलन है, जो सरहद पर तैनात सैनिकों के जीवन के अनसुने-अनजाने क़िस्से सुनाता है ! गौतम के काव्य-कौशल को तो पाठक “नीला-नीला” और “पाल ले इक रोग नादाँ” में देख ही चुके हैं, यदि आप उनकी लिखी कहानियों में छिपी भावनाओं और पीड़ा, विचारों और प्रश्नों का आनंद लेना चाहते हैं तो अवश्य पढ़ें ह्रदय-स्पर्शी कहानियों का संग्रह – हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज! सैनिकों के सीमा पर बिताये गए लम्हें, सरहद पार से आती गोलियों और गोलों के साये में काटी गयी रातें एवं उनके जीवन के और भी पहलुओं को बयां करती ये पुस्तक आप अभी अमेज़न से प्राप्त कर सकते हैं।

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Video review of Hari Muskuraahaton Wala Collage by famous author Pankaj Subeer

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हिन्दी समीक्षा2: हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज 

हिन्दी समीक्षा3: हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज 

हिन्दी समीक्षा4: हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज 

हिन्दुस्तान अखबार में हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज की समीक्षा 

अमर उजाला में हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज की समीक्षा 

ट्रिब्यून में हरी मुस्कुराहटों वालों कोलाज की समीक्षा 

Paal le ik rog naadan

पाल ले इक रोग नादाँ

गौतम राजऋषि की प्रथम पुस्तक, पहला ग़ज़ल संग्रह एवं काव्य साहित्य में किया गया एकदम से अनोखा योगदान! पाल ले इक रोग नादाँ के प्रकाशित होते ही भारतीय हिंदी-उर्दू भाषा के समकालीन साहित्य में एक नया सूत्रपात हुआ – ग़ज़ल, कविता, शायरी या फिर यों कहें कि साहित्य में प्रयोग होने वाली भाषा, शैली एवं एक बंधन टूट सा गया… सीमा पर बंदूक तान खड़े रहने वाला फौजी अपनी ही शैली में रचित साहित्य लेकर अपने पाठकों से सीधा संवाद करता है! ये ख़ास उनकी सिग्नेचर स्टाइल की ग़ज़लें है जिसमें कहीं चाँद सिगरेट पीता है तो कहीं धूप शावर में नहाती है। कहीं ठंडी होती कॉफ़ी के इंतज़ार में कोई कैडबरी चॉकलेट अपने रैपर के अंदर पिघलती है तो कहीं कोई येल्लो पोल्का डॉट्स वाली कमसिन पूरे मौसम को चितकबरा करती है। ग़ज़लों की ये इमेजरी मॉडर्न है और एक अलहदा कल्चर बुनती है अपने रीडर्स के इर्द-गिर्द। गौतम की मिसाल शौर्य से शायरी तक उठती है और एक नया आसमान बनाती है। कश्मीर की बर्फ़ीली सरहदों पर बुनी गई इन ग़ज़लों में कर्नल गौतम का निशाना अचूक है कि हर मिसरा दिल के सबसे नाज़ुक कोने में जाकर लगता है। कुछ यूँ कि किसी कोने से टीस उठे तो किसी से खिलखिलाहट। अपने प्रकाशन के साथ यह किताब दैनिक जागरण और निल्सन की हर चौथे महीने में निकने वाली बेस्टसेलर लिस्ट में लगातार जगह बनाए हुए है |

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Indian Book Critics: Paal Le Ik Rog Naadan
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