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हरी है ये ज़मीं हमसे कि हम तो इश्क़ बोते हैं
हमीं से है हँसी सारी, हमीं पलकें भिगोते हैं
गौतम राजऋषि भारतीय सेना में कर्नल हैं। ‘पराक्रम पदक’ और ‘सेना मेडल’ से सम्मानित राजऋषि जब भी अपनी ड्यूटी से फ़ुर्सत में होते हैं, क़लम उठा लेते हैं…या यूँ कहें कि जब वे कोई मिसरा नहीं बुन रहे होते हैं तो उस वक़्त अपने कंधे पर लगे सितारे और सीने पर टँके पदकों की दमक थोड़ी और बेहतर कर रहे होते हैं। उनकी लिखी ग़ज़लें न केवल मंचों से श्रोताओं के दिलों तक पहुँचती हैं बल्कि पुस्तकों के माध्यम से पाठकों की भावनाओं को भी स्पर्श करती हैं। गौतम ग़ज़ल के साथ- साथ कहानियां, कवितायें, डायरी आदि विधाओं में भी लिखते हैं। उनकी कई कहानियाँ हंस, वागर्थ, पाखी, नया ज्ञानोदय, परिकथा, जनसत्ता, दैनिक जागरण आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। उनकी अधिकांश पोस्टिंग कश्मीर के आतंकवाद-ग्रसित इलाक़े और बर्फ़ीली ऊंचाई पर स्थित नियंत्रण-रेखा की निगरानी में गुज़री है। ऐसी नियुक्तियों के दौरान बंदूक और क़लम दोनों को संजीदगी से पकड़ना और उन के बीच जुगलबंदी स्थापित करते हुए अपनी पहचान बना लेना अपने आपमें उल्लेखनीय है। ‘पाल ले इक रोग नादां’ उनकी ग़ज़लों का पहला संकलन था, जो अपने प्रकाशन के बाद से दैनिक जागरण की बेस्टसेलर लिस्ट में लगातार अपनी उपस्थिति बनाये हुए है। इसके बाद आया कहानी संग्रह ‘हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज’ भी काफी चर्चित रहा। इसके तीन साल में तीन संस्करण आ चुके हैं और मराठी, उड़िया, इंग्लिश व बंगला में अनुवाद हो चुका है। उनकी हालिया पुस्तक एक ग़ज़ल संग्रह है, जो ‘नीला-नीला’ नाम से प्रकाशित हुई है और चर्चा के नये अयाम बनाने की ज़िद पर है।
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अन्य कवियों, शायर और आलोचकों के विचार:
मुझे फख्र है कि मैंने कर्नल गौतम की ग़ज़लों को पढ़ा, आँखों से चूमा और सीने से लगाया है| तिरसठ बरस के इस बूढ़े शायर को गौतम राजऋषि की शायरी से निकलती हुई आँच की ज़रूरत पड़ती है| मैं मिसाल के तौर पर गौतम की ग़ज़लों के कुछ शेर पढ़ने वालों के हवाले करना चाहता हूँ, लेकिन मेरी सादा मिज़ाजी इस बात की इज़ाजत नहीं देती कि मैं कुछ शेर यहाँ पर लिखूँ| इससे पढ़ने वालों की सोच में भटकाव आता है और वैसे भी अच्छी शायरी उस मिठाई की दुकान की तरह नहीं होती जिसे “सैम्पल पैक” के ज़रीये पेश किया जाये| मेरी दिली दुआ है कि गौतम अपनी शायरी से इसी तरह अदब और साहित्य के ख़ज़ाने को मालामाल करते रहेंगे|
गौतम की ग़ज़लें, उनकी ही सी हैं, आज़ादख्याल, मौलिक। कुछ बातूनी, कुछ संजीदा। कुछ भोली और कुछ नटखट। वे बिना परवाह एकदम नये लफ़्ज़ों का मॉडर्न लिबास पहन लेने देते हैं अपने शेरों को, जो उन ग़ज़लों पर बहुत फबते हैं। एक कमसिन भाषा, ग़ज़ल को देकर उन्होंने नौजवानों की नब्ज़ पकड़ने का काम किया है। कैडबरी रैपर, लॉन, शॉवर, बाईक, रिबन, ऑफिस, न्यूज़पेपर, मिस्ड कॉल, हैंगओवर, यलो पोल्का डॉट्स, वगैरह वगैरह। कई-कई जगह नए मिसरों से समृद्ध किया है उन्होंने आधुनिक हिंदी ग़ज़ल को। गौतम किसी बंधाव के शायर नहीं, वे अपनी ग़ज़लों में खूब खुलते हैं। प्रकृति प्रेम में गौतम अपने अशआरों में मानवीकरण की शैली अपनाते हैं। सुबह, सूरज, शाम, मौसम, दिन, किसका मानवीकरण नहीं करता शायर ? मिसरे, ग़ज़ल तक उनके यहां इंसान की शक्ल इख़्तियार कर बैठते हैं…सादादिल लोगों की आमफ़हम दुनिया गौतम की ग़ज़लों में मानो किसी गुमी हुई शै की तरह आ निकलती है, जिसे शायरों और अदीबों की दुनिया ने हुस्न ओ इश्क़, रंज, सियासत की क्लिष्टता में खो सा दिया था। कोई ग़ज़ल ऐसी कि कोई बच्चा पढ़कर खिलखिला दे। कोई ऐसी की चरवाहा उसकी धुन बनाने की सोचे। कोई ऐसी कि जिसे पढ़ पोल्का डॉट्स वाली कमसिनी बहक उठे। कोई ऐसी कि जवानी के पहर से गुज़रतों को ठिठका दे। कोई ढलती उम्र की चौखट पर उम्मीद का दिया जला जाए। गौतम ने अपनी ग़ज़लों से ख़ास अपना सिग्नेचर हासिल किया है, जो उनको भीड़ से एकदम अलग करता है।
गौतम नई शब्दावली, नए प्रतीक और नई तश्बीहों के साथ, अश’आर के ज़रिए जो इमेजिज़ रचते हैं, वो नायाब हैं। ग़ज़ल में कल्पनाशीलता के ज़रिए बिम्ब की रचना पहले भी ग़ज़लकार कर चुके हैं, लेकिन नया समय जिस प्रकार गौतम की प्रयोगधर्मी अभिव्यक्ति में साँस लेता दिखाई देता है…वो अपने आप में अनूठा और विरल है। गौतम शेर के भीतर दृश्य को रचने का तिलिस्म गढ़ते हैं। वो शेर व्यक्त करते हैं…दृश्य ख़ुद-ब-ख़ुद व्यक्त होने लगता है। दृश्यातमत्कता ऐसी कि शेर बोलता हुआ दिखाई दे। ग़ज़ल में जब प्रकृति का चित्रण होता है तो अमूमन शेर साधारण हो जाते हैं, लेकिन जब कल्पनाशीलता जैसे तत्व से प्रकृति की छवियाँ रची जाएँ और आधुनिक प्रतीकों से इमेजिज़ की रचना हो तो शेर बड़े हो जाते हैं। गौतम के यहाँ प्रतीक नए हैं। प्रयोग दुस्साहस से भरा। शब्द ! शब्द ज़िन्दगी के रोजनामाचे से चुने हुए – केतली, सिगरेट, उबासी, देगची, वगैरह| यह नए समय की ग़ज़लगोई है – नए समय की अभिव्यक्ति। प्रकृति को व्यक्त करते हुए जो शब्द चुने वो सारे भौतिक। लेकिन इस विरोधाभास से जो ग़ज़ल हुई है, वो चकित करती है। ग़ज़लगोई का यह अंदाज़ आधुनिक है और उत्तर आधुनिक भी। शावर, सोफा, सिगरेट, बल्ब, लॉन…तमाम शब्द जब ग़ज़ल में आते हैं तो प्रतीक बनकर गूंजने लगते हैं। गौतम ऐसे साहसिक प्रयोगों से अपनी ग़ज़लों में न सिर्फ़ चमक पैदा करते हैं, बल्कि परंपरागत हदबंदियों को तोड़ते हुए नया लबो-लहजा पैदा करते हैं।
गौतम राजऋषि की ग़ज़लें ग़ज़ल में आई एकरसता को तोड़ती हैं। एकदम नई बातें…कोई सोच भी नहीं सकता, ऐसे मिसरे बुनते हैं गौतम। गौतम के शेरों की इमेजरी इनको समकालीन शायरों की बिरादरी में एक अलग ही रुतबा देती है। ये नयापन ग़ज़ल क्षेत्र में गौतम की एकदम अलग पहचान बनाएगा।
गौतम की ग़ज़लें… ख़ास उसके अपने ही रंग में डूबी हुई होती हैं, एक बहुत ही ख़ास बौछार में नहाई हुई ग़ज़लें। गुनगुनी धूप में जैसे वादियाँ अपने बदन से रात की ओस उतारें या जैसे कुहरे का हल्का-हल्का धुआँ उड़ने लगे। ये मर्तबा बड़ी मुश्किल से मिलता है कि किसी के शेर उसके नाम से पहचाने जायें…गौतम ने वो मर्तबा अपनी मेहनत, अपनी लगन से बहुत कम वक़्त में हासिल कर लिया है। सैकड़ों शेरों की भीड़ गौतम के शेर अलग से पहचाने जा सकते हैं…ग़ज़ल के शेर में नस्र की पराकाष्ठा…अहा ! आम तौर पर भाषा पर पूर्णाधिकार के बाद ये मंज़िल नसीब होती है। माँ शारदे का विशेष आशीर्वाद प्राप्त है गौतम की क़लम को…ज़िन्दाबाद !
गौतम राजऋषि सचमुच ग़ज़ल-गाँव का बुलंद बाशिंदा है। मेरे प्रिय शायर मुनव्वर राणा ने सही लिखा है कि बूढ़े शायर को गौतम की शायरी से निकली हुई आंच की जरुरत पड़ती है| सिर्फ उन्हें ही क्यों, हम सबको पड़ेगी| हर ग़ज़ल पर जाँ निकलती है। बहुत तिलिस्मी ग़ज़लें हैं गौतम की। मुझे अपने मिज़ाज के हिसाब से शायरी ढूँढे न मिलती थी कई बार। अब गौतम की ग़ज़लों का रोग पाल लिया कि यह आँच रहेगी साथ। जब जब मेरा सूरज आराम पर जाएगा, इन ग़ज़लों से किरणें निकलेंगी और सुकून दे जाएँगी| ग़ज़लें नहीं, रसद हैं हम जैसों के लिए…अपनी विरानगी में खाने पीने जीने के लिए। कुछ भूख-प्यास इनसे भी मिटा करती हैं…कठजीव और अति व्यवहारिक प्राणी क्या जानें ! ये तो वही जाने जिसने पत्थर के नीचे उगी दूब का दुख सुख जाना हो….”उजली उजली बर्फ़ के नीचे पत्थर नीला नीला है / तेरी यादों में ये सर्द दिसंबर नीला नीला है”।